राजस्थान की प्रेम कथाएँ रानी लंक्ष्मीकुमारी चूंडावत "रांणी लक्ष्मीकुमारी जी चूण्डावत राजसथानी साहितय री सेवा वासते रांणी चूण्डावत जी रा दूहा- करी तने किरतार, तारण भाषा प्रांत री । रांणी लिखमी लार, जीवण राजसंथान रौ ।। माता रौ पावै मिनकख, पोखण भाषा प्रांण । मीठौ पायौ मात सूं, हुवै जेण री हांण ।। जीवण राजसंथान, भाषा राजस्थान री । धारै तारण ध्यांन, सिरे वंश सीसोदणी।। स्वांस्थ छूटां सेव, वणै सफळ इण भांत री । दीनो अवसर देव, चूंडावत चूके मती ।। रांणी लिखमी रीह, कीरत सह भारत करै । थूं वारी थारीह, चूंडावत चूके मती ।। वहती समय विचार, कर हीमत सेवा करै । रहै सुजस ज्यों लार, सुण लीजे सीसोदणी ।। रांणी लिखमी रंग, राखेे राजसंथान रौ । जीवण भाषा जंग, समर करौ सीसोदणी ।। ऊमर वीती जाय, नर देही रैवे नही । जस अेको रह जाय, सेवा पथ सीसोदणी ।।
राजस्थान की प्रेम कथाएँ | Rajasthan ki Prem Kathayen
Rani Laxmi Kumari Chundawat