आनन्द उपन्यास का यह द्वितीय संस्करण प्रस्तुत है। यह उपन्यास राजकीय विद्यालय के 'शास्त्री' परीक्षा के पाठ्यक्रम में तीन वर्ष तक रहा। यह उपन्यास बौद्ध और ब्राह्मण धर्म के संघर्ष काल की ऐतिहासिक परिकल्पना पर आधारित है। इसकी हर बात के पीछे एक ठोस दार्शनिक तर्क और शास्त्रों का साक्ष्य निहित है। एक संस्कृत के प्रोफेसर ने कहा था कि मैंने इस उपन्यास को 21 बार पढ़ा है। हर बार मुझे कुछ-न-कुछ नवीनता अनुभव हुई है। मैं आपसे भी निवेदन करता हूँ अनेकान्तवादी बनकर इस उपन्यास को पढ़ें। आप का दृष्टिकोण जितना व्यापक होगा आपकी चेतना के विस्तार में यह उपन्यास सहायक होगा।
किसी खास दार्शनिक पृष्ठभूमि में 'आनन्द' को सेना का नेतृत्व करते दिखाया है, पर आप आज देख रहे हैं। संन्यासी के भगवा चोले में संन्यासी व्यापार ही नहीं कर रहे हैं बल्कि सत्ता सुख की लालसा में स्वयं पद प्राप्त करने के लिए निम्न स्तर पर उतर आये हैं। मेरी भविष्यवाणी किसी आदर्श से प्रेरित थी सत्ता सुख के लिए नहीं।
आप इस उपन्यास के साथ न्याय करने के लिए उदार हृदय, एक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि, इतिहास, धर्म-दर्शन और प्राकृतिक सत्य के दृष्टिकोण से पढ़ें ।
आनन्द | Aanand
Author
Sitaram Pareek
Publisher
Pulkit Prakashan
No. of Pages
160