स्वाधीनता–आंदोलन की चरम परिणति थी आजादी लेकिन उससे जुड़ा सदी का कुरूपतम सचµविभाजन । बारह बजे रात के उसी का वृत्तांत है । यह बड़ी–बड़ी परिघटनाओं वाला इतिहास नहीं बल्कि छोटी–छोटी घटनाओं, मामूली विवरणों, हजारों दस्तावेजों और साक्षात्कारों से सजा सूक्ष्म इतिहास है । हालाँकि लैरी कॉलिन्स और डोमीनिक लापियर दोनों विदेशी लेखक हैं फिर भी जिस आत्मीयता और निष्पक्षता से उन्होंने विभाजन के गोपन रहस्यों, षड्यंत्रों, साम्प्रदायिक नंगई और ओछेपन को उजागर किया है, उसकी चतुर्दिक सराहना हुई है । दिलचस्प है कि इसमें कहीं भी ब्रिटिश साम्राज्यवाद का पक्ष नहीं लिया गया । विरले ही कोई गैर–साहित्यिक कृति क्लासिक बनती है लेकिन सच्चाई, पठनीयता और निष्पक्षता की बदौलत यह क्लासिक बन गई । भारतीय उपमहाद्वीप की कई पीढ़ियाँ इसे पढ़ेंगी ।
बारह बजे रात के | Barah Baje Raat Ke
Larry Collins and Dominique Lapierre, Tr. Munish Saxena