'भारतीय संस्कृति' नामक मेरी पुस्तक 1990 में प्रकाशित हुई थी और लगभग एक वर्ष में ही वह अप्राप्य हो गई। 1993 में उस पुस्तक का द्वितीय संस्करण निकला और उसकी भी वहीं परिणति हुई । राजस्थान संस्कृत अकादमी ने इस पुस्तक को 'भारती पुरस्कार' से पुरस्कृत करके मुझे सम्मानित किया। सम्पूर्ण भारत, विशेषतः उत्तर भारत में यह पुस्तक अत्यन्त लोकप्रिय हुई। सुधी विद्वानों ने अमूल्य सुझाव भी भेजे। पुस्तक के पुनः प्रकाशन के निरन्तर आयह पाकर मैंने संपूर्ण पुस्तक को संशोधित करने का मानस बनाया। दो वर्षों की निरंतर साधनापूर्वक 'भारतीय संस्कृति' की यह पुस्तक सर्वथा नवीन एवं परिबृंहित रूप में आप सब के सम्मुख प्रस्तुत है । भारतीय संस्कृति एक ऐसी अपूर्व शक्ति किंवा जीवनदर्शन अथवा सम्यक् परम्परा है जो भारत की भौगोलिक सीमाओं में सहस्त्र वर्षों से प्रवहमान है। प्राणदायिनी आन्तरिक उर्जा से सम्पन्न होने के कारण प्रतिकूल प्रभाव इसके प्रवाह को बाधित नहीं कर सके हैं। ऐसी नवनवोन्मेषशालिनी भारतीय संस्कृति के स्वरूप को पुस्तक के कलेवर में समेट पाना दुष्कर ही है। फिर भी प्रस्तुत पुस्तक के विभिन्न अध्यायों में भारतीय संस्कृति के सभी तत्त्वों को संक्षेप में देने का प्रयास अवश्य किया गया है। इस पुस्तक को लिखते समय मुख्य उद्देश्य यही रहा कि भारतीय संस्कृति के समुज्ज्वल स्वरूप का एक समय चित्र पाठक को उपलब्ध हो सके, शैली की रोचकता बनी रहे और पुस्तक सरल भी रह सके। इस दृष्टि से भारतीय संस्कृति के विस्तृत पटल को देख सकने के लिए तोरण द्वार के रूप में यह पुस्तक प्रवेशिका मात्र है। इस पुस्तक में मौलिकता के लिए विशेष स्थान न होने पर भी इसकी कुछ निजी विश
भारतीय संस्कृति | Bharitya Sanskriti
Dr. Priti Prabha Goyal