मेवाड़ के शीर्ष-पुरूषों की कीर्तिपूजा अपने शब्द-सुमनों से करने के उपरांत और भक्त -शिरोमणि मीरां की श्रद्धांजलि समर्पित करने में बाद भी, इन सबकी पंक्ति में प्रथम स्ािान प्राप्त, मेवाड़ में इतिहास-लेखन-परम्परा प्रारम्भ करने वाले और अपनी कीर्ति में अपना, मेवाड़ में सबसे उत्तंग कीर्ति-स्तम्भ निर्मित कराने वाले, जो अब भारत की श्रेष्ठता का द्योतक बना हुआ है, महाराणा कुंभा से 100 वर्ष पहले होने वाली, अनेक प्रकार से अनुपम, जिनकी सौन्दर्य-सिद्धि के लिए समुद्रपार सिंहल द्वीप में उनका उद्गम उल्लिखित हुआ है और जिन्होने चित्तौड़ में जौहर प्रणाली का प्रारम्भ करके उसकी ज्वालाओं से अपने पति का आत्मोसर्ग मार्ग आलोकित किया, उन राजरानी पद्मिनी की चारित मेरी कहानी की परिधि से बाहर अब तक क्यों रहा, इसका कारण मुझसे अब तक नहीं बन पड़ा हैं, सिवाय इसके कि उनकी गाथा उनके समय में अब तक पद्मिनी की कोई क्रमबद्ध जीवनी नहीं है। मुनि जिनविजय जैसे अध्येता और उद्धट विद्वान को भी प्रश्न उठाना पड़ा है:- ‘‘यह एक आश्चर्य-सा लगता है कि हेमरतन आदि राजस्थानी कवियों ने पद्मिनी के जीवन के अन्तिम रहस्य के बारे में कुछ नहीं लिखा?’’ इस अवधि में ही आता है साका और जौहर जो राजस्थानी वीर परम्परा के ऐसे अंत रहे जिसे भावी पंक्ति या प्रेरणा प्राप्त करती रही। इसकी परिपूर्ति करने का साहस मुुझ जैसे मेवाड़ से दूर बैठकर अध्ययन और अभिव्यक्ति करने वाले अल्पज्ञ का नहीं हो सकता। फिर भी पद्मिनी चरित के अधूरे अंशों का शब्दों से ढकने का प्रयत्न मैंने इस पुस्तक में किया है।
चितौड़ की रानी पद्मिनी | Chittor Ki Rani Padmini
Rajendra Shankar Bhatt