राग दरबारी एक ऐसा उपन्यास है जो गाँव की कथा के माध्यम से आधुनिक भारतीय जीवन की
मूल्यहीनता को सहजता और निर्ममता से अनावृत करता है। शुरू से आखिर तक इतने निस्संग और सोद्देश्य व्यंग्य के साथ लिखा गया हिन्दी का शायद यह पहला वृहत् उपन्यास है। फिर भी राग दरबारी व्यंग्य-कथा नहीं है।
इसका सम्बन्ध एक बड़े नगर से कुछ दूर बसे हुए गाँव की जिन्दगी से है, जो इतने वर्षों की प्रगति और विकास के नारों के बावजूद निहित स्वार्थी और अनेक अवांछनीय तत्त्वों के सामने घिसट रही है। यह उसी जिन्दगी की दस्त है।
1968 में राग दरबारी का प्रकाशन एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक घटना थी।
1970 में इसे साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1986 में एक दूरदर्शन धारावाहिक के रूप में इसे लाखों दर्शकों की सराहना प्राप्त हुई। वस्तुतः राग दरबारी हिन्दी के कुछ कालजयी उपन्यासों में से एक है।
राग दरबारी | Raag Darbari
Shrilal Shukla