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यह अभिनय जब समाप्त हुआ, तो उधर रंगशाला में धनुष यज्ञ समाप्त हो चुका था। और सामाजिक प्रहसन की तैयारी हो रही थी; मगर इन सज्जनों को उससे विशेष दिलचस्पी न थी। केवल मिस्टर मेहता देखने गये और आदि से अन्त तक जमे रहे। उन्हें बड़ा मजा आ रहा था। बीच-बीच में तालियां बजाते जाते थे और 'फिर कहो, फिर कहो' का आग्रह करके अभिनेताओं को प्रोत्साहन भी देते जाते थे। रायसाहब ने इस प्रहसन में एक मुदकमेबाज देहाती जमींदार का खाका उड़ाया था। कहने को तो प्रहसन था मगर करुणा से भरा हुआ। नायक का बात-बात में कानून की धाराओं का उल्लेख करना, पत्नी पर केवल इसलिए मुकदमा दायर कर देना कि उसने भोजन तैयार करने में जरा-सी देर कर दी, फिर वकीलों के नखरे और देहाती गवाहों की चालाकियाँ और झाँसे, पहले गवाही के लिए चट-पट तैयार हो जाना; मगर इजलास पर तलवी के समय खूब मनावन करना और नाना डकार की फरमाइशें करके उल्लू बनाना, वे सभी दृश्य देखकर लोग हँसी के मारे लोटे जाते थे। सबसे सुन्दर वह दृश्य था, जिसमें वकील गवाहों को उनके बयान रटा रहा था। गवाहों का बार-बार भूलें करना, वकील का बिगड़ना, फिर नायक का देहाती बोली में गवाहों को समझाना और अन्त में इजलास पर गवाहों का बदल जाना, ऐसा सजीव और सत्य था कि मिस्टर मेहता उछल पड़े और तमाशा समाप्त होने पर नायक को गले लगा लिया और सभी नटों को एक-एक मेडल देने की घोषणा की। रायसाहब के प्रति उनके मन में श्रद्धा के भाव जाग उठे। रायसाहब स्टेज के पीछे ड्रामे का संचालन कर रहे थे। मेहता दौड़कर उनके गले लिपट गए और मुग्ध होकर बोले-आपकी दृष्टि इतनी पैनी हैं, इसका मुझे अनुमान न था।'

गोदान | Godan

SKU: 818035007XPB
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₹180.00बिक्री मूल्य
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  • Author

    Munshi Premchand

  • Publisher

    Unique Traders

  • No. of Pages

    326

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