श्रीराम के जन्म के कारण - बैकुण्ठ लोक में भगवान विष्णु के दो मुख्य पार्षद जय एवं विजय नाम से प्रसिद्ध थे। एक बार उन्होंने सनकादि मुनियों को, विष्णु भगवान के पास जाने से रोक दिया। सनकादि को, उनका व्यवहार देखकर तनिक आवेश हो आया और उन्होंने उन दोनों को असुर योनि में जन्म लेने का शाप दे दिया। जब विष्णु भगवान को ज्ञात हुआ तो वे स्वयं वहाँ आये, सनकादि के शाप का अनुमोदन किया किन्तु सनकादि से प्रार्थना की कि मुनिवरों ! इन दोनों की असुर योनि में रहने की सीमा तय कर दें। तब उन ऋषियों ने जय एवं विजय को तीन तीन बार असुर योनि में रहने की सीमा तय कर दी। दोनों पार्षद जैसे ही बैकुण्ठ लोक से पृथ्वी पर गिरे तो प्रथम योनि के लिये वे महामुनि कश्यप की दूसरी पनि दिति के गर्भ में प्रवेश कर गये और हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दानव बनें। दूसरी बार रावण और कुम्भकरण बने और तीसरी बार शिशुपाल तथा दन्तवक्र बनें। दूसरी बार रावण, कुम्भकरण बनने पर विष्णु भगवान ने राम रूप धारण किया।
सत्युग में एक बार देवताओं एवं दानव तथा राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध से घबराकर कुछ राक्षस परम महर्षि भृगु की पत्नि के आश्रम में आकर छिप गये। महर्षि की पत्नि ने उन्हें शरण प्रदान की। जब विष्णु भगवान को यह ज्ञात हुआ तो वे क्रोध में भरकर भृगु ऋषि के आश्रम पर आये और अपने चक्र से भृगु पत्नि का सिर काट दिया। यह देखकर भृगुजी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने विष्णुदेव को शाप दे दिया कि " आपको भी मानव देह में बहुत दिनों तक नारी विरह की वेदना सहन करनी पड़ेगी।" फिर भृगुजी ने विष्णु भगवान की ही कठोर तपस्या की और केवल यहीं वर माँगा कि मेरा शाप सत्य हो। भगवान ने एवमस्तु कह दिया.
सरल रामायण | Saral Ramayan
Hari Singh