'पथेर दावी' (पथ के दावेदार) उपन्यास- सम्राट श्री शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय की सर्वश्रेष्ठ रचना है। शरत बाबू के उच्चकोटि के, मौलिक, स्वदेशानुराग और देश सेवा के भावों से ओत-प्रोत होने के कारण इस उपन्यास का बड़ा महत्त्व समझा जाता है। जिस समय इस उपन्यास का प्रथम संस्करण बंगला में प्रकाशित हुआ था, उस समय एक तहलका- सा मच गया था और इसे खतरे की चीज समझकर ब्रिटिश सरकार ने इस पुस्तक को जब्त कर लिया था।
अपूर्व सिर पर चोटी रखे, कॉलेज में छात्रवृत्ति और मेडल प्राप्त करके परीक्षाएं भी पास करता रहा और घर में एकादशी आदि व्रत और संध्या-पूजा आदि नित्य कर्म भी करता रहा। खेल के मैदानों में फुटबाल, क्रिकेट, हॉकी आदि खेलने में उसको जितना उत्साह था प्रातः काल माँ के साथ गंगा स्नान करने में भी उससे कुछ कम नहीं था । उसकी संध्या-पूजा देखकर भौजाइयां भी मजाक करतीं, बबुआजी पढ़ाई- लिखाई तो समाप्त हुई, अब चिमटा, कमंडल लेकर संन्यासी हो जाओ तुम तो विधवा ब्राह्मणी से भी आगे बढ़े जा रहे हो। "
→ अपूर्व के विवाह के लिए लोग बड़े भाई विनोद को आकर परेशान करते। विनोद ने जाकर माँ से कहा, "माँ, कौन-सी निष्ठावान जप-तपवाली लड़की है, उसके साथ अपने बेटे का ब्याह करके किस्सा खत्म करो नहीं तो मुझे घर छोड़कर भाग जाना पड़ेगा। बड़ा होने के कारण लोग समझते हैं कि घर का बड़ा बूढ़ा मैं ही हूँ।"
→ पुत्र के इन वाक्यों से करुणामयी अधीर हो उठी। लेकिन बिना विचलित हुए मधुर स्वर में बोली, "लोग ठीक ही समझते हैं बेटा। उनके बाद तुम ही तो घर के मालिक हो। लेकिन अपूर्व के संबंध में किसी को वचन मत देना। रूप और धन की आवश्यकता नहीं स्वयं देख-सुनकर तय करूंगी।" स इतना महत्त्वपूर्ण समझा गया कि कवि रवीन
पथ के दावेदार | Path ke Davedar
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