top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की विपुल रचना-सामर्थ्य का रहस्य उनके विशद शास्त्रीय ज्ञान में नहीं, बल्कि उस पारदर्शी जीवन-दृष्टि में निहित है, जो युग का नहीं, युग-युग का सत्य देखती है। उनकी प्रतिभा ने इतिहास का उपयोग 'तीसरी आँख' के रूप में किया है और अतीतकालीन चेतना प्रवाह को वर्तमान जीवनधारा से जोड़ पाने में वह आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई है।

'बाणभट्ट की आत्मकथा' अपनी समस्त औपन्यासिक संरचना और भंगिमा में कथा कृति होते हुए भी महाकाव्यत्व की गरिमा से पूर्ण है। इसमें द्विवेदी जी ने प्राचीन कवि बाण के बिखरे जीवन-सूत्रों को बड़ी कलात्मकता से गूँथकर एक ऐसी कथाभूमि निर्मित की है जो जीवन-सत्यों से रसमय साक्षात्कार कराती है ।

'बाणभट्ट की आत्मकथा' का कथानायक कोरा भावुक कवि नहीं वरन् कर्मनिरत और संघर्षशील जीवन-योद्धा है। उसके लिए 'शरीर केवल भार नहीं, मिट्टी का ढेला नहीं, बल्कि 'उससे बड़ा' है और उसके मन में आर्यावर्त्त के उद्धार का निमित्त बनने की तीव्र बेचैनी है। 'अपने को निःशेष भाव से दे देने' में जीवन की सार्थकता देखनेवाली निउनिया और 'सबकुछ भूल जाने की साधना' में लीन महादेवी भट्टिनी के प्रति उसका प्रेम जब उच्चता का वरण कर लेता है तो यही गूँज अंत में रह जाती है—'वैराग्य क्या इतनी बड़ी चीज है कि प्रेम देवता को उसकी नयनाग्नि में भस्म कराके ही कवि गौरव का अनुभव करे?'

बाणभट्ट की आत्मकथा | Banbhatt Ki Aatmakatha

SKU: 9788126717378
₹399.00 नियमित मूल्य
₹359.10बिक्री मूल्य
स्टॉक में केवल 1 ही शेष हैं
  • Author

    Hazariprasad Dwivedi

  • Publisher

    Radhakrishan Prakashan

  • No. of Pages

    326

अभी तक कोई समीक्षा नहींअपने विचार साझा करें। समीक्षा लिखने वाले पहले व्यक्ति बनें।

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page