जोधपुर संस्करण के सम्पादक रहे। करीब दो वर्ष तक राजस्था पत्रिका के अंग्रेजी संस्करण में समाचार सम्पादक का दायि निभाया तथा लगभग पाँच वर्ष तक नई दिल्ली से प्रकाशित अंग्रे दैनिक 'पेट्रियट' के विशेष संवाददाता रहे। वे लगभग नौ वर्ष त राजस्थान पत्रिका के निदेशक रहे। स्व. पारीक राजस्थान श्रम पत्रकार संघ के संस्थापक सचिव भी थे। हिन्दी, अंग्रेजी व ढूंढा पर समान अधिकार रखने वाले स्व. पारीक के प्रमुख राष्ट्रीय अंग्रे व हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में राजस्थान के इतिहास, कला एवं संस्क विषयक लगभग आठ सौ लेख (नगर परिक्रमा स्तम्भ के अतिरिक्त प्रकाशित है। जयपुर नगर, इसके गली मोहल्लों, साहित्य, संस्कृति लोक और लीक से स्व. पारीक को आरम्भ से ही गहरा लगाव र और 1972 में जब उन्होंने राजस्थान पत्रिका में नगर परिक्रमा स्तम लिखना आरम्भ किया तो जयपुर के आसन्नभूत जन जीवन विविध अनछुए सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक पा ऐतिहासिक संदर्भों के साथ जिस प्रकार उजागर होते चले गये अपने आप में एक कहानी बन गई। स्व. पारीक ने 26 वर्ष से अधि समय तक यह स्तम्भ लिखा, जो एक कीर्तिमान है। अपने नगर क विरूदावली में स्व. पारीक ने 80 लाख से अधिक शब्द जोड़े बनावटीपन से दूर किन्तु साहित्यिक वाक्य संरचना के सा बोलचाल की भाषा में नगर परिक्रमा की सामग्री जिस प्रकार सामने आई, वह सदा के लिए एक प्रामाणिक संग्रह और संदर्भ सो बन गई। उनकी अभी तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इन अंग्रेजी में "जयपुर दैट वाज रॉयल कोर्ट एण्ड दी सरेलिओ" तथ हिन्दी में "गौरव पुरुष सर पुरोहित गोपीनाथ", "राज दरबार औ रनिवास", "जयपुर की गालीबाजी की परम्परा और परिक्रमाएं" "1857 का गदरकालीन जयपुर", "संघी झुंथाराम
राज-दरबार और रनिवास | Raj-Darbar aur Raniwas
Nandkishor Pareek