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तुम जब वसीयतनामा लिखने जाने लगना, तब इस वसीयतनामे को अपने करते । की जेब में छिपाकर ले जाना। वहाँ जाकर इसी स्याही कलम से उनकी इच्छानुसार वसीयतनामा लिखना कागज कलम् स्याही और लेखक एक ही होगा। इस कारण दोनों ही वसीयतनामे देखने में एक ही तरह के होंगे। बाद का वसीयतनामा पढ़कर सुनाना और उस पर हस्ताक्षर हो चुकने के बाद अंत में तुम हस्ताक्षर करने के लिए उसे लेना। सबकी तरफ पीठ करके अपना हस्ताक्षर करना। उसी मौके में निगाह बचाकर वसीयतनामे को बदल लेना। इसको मालिक को देकर मालिक वाला वसीयतनामा मुझे लाकर देना।

हरलाल के चले जाने पर ब्रह्मानंद को बहुत ही डर लगा। उन्होंने देखा कि मैंने जिस काम को करना स्वीकार किया है, वह राजद्वार में महादण्डनीय अपराध है-कौन जाने, भविष्य में कहीं मुझे आजीवन कारावास का दण्ड न भुगतना पड़े, और बदलते समय यदि कोई पकड़ ले? तो ऐसा काम क्यों करू? न करने से हाथ आया एक हजार रुपया छोड़ देना पड़ेगा। यह भी नहीं हो सकता, प्राण रहते नही। हाय फलाहार ! कितने दरिद्र ब्राह्मणों को तुमने घातक पीड़ा दी है। इधर संक्रामक ज्वर चढ़ा है, प्लीहा से उदर फूल रहा है. इसके ऊपर फलाहार से साक्षात्कार हो गया। तब फूल की थाली में अथवा .....

इसके बाद पांचवां वर्ष आ गया। पांचवें वर्ष में एक बहुत बड़ी गड़बड़ी उपस्थित हुई। हरिद्राग्राम में खबर आई कि गोविंदलाल वैरागी के वेश में वृन्दावन में रहते थे वहाँ से उनको गिरफ्तार कर पुलिस जैसोर ले लाई है, जैसोर में उनपर विचार होगा...

कृष्णकान्त का वसीयतनामा | Krishnkant ka vasiyatnama

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  • Bankimchandra Chattopadyay

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