top of page
Product Page: Stores_Product_Widget

'नरकयात्रा' और 'बारामासी' के बाद 'मरीचिका' हमें नितांत नए ज्ञान चतुर्वेदी से परिचित कराता है। इस पौराणिक फैटेसी में वे भाषा, शैली, कथन तथा कहन के स्तर पर एकदम निराली तथा नई जमीन पर खड़े दीखते हैं। यहाँ वे व्यंग्य को एक सार्वभौमिक चिंता में तब्दील करते हुए 'पाटुकाराज' के मेटाफर के माध्यम से समकालीन भारतीय आमजन और दरिद्र समाज की व्यथा कथा को अपने बेजोड़ व्यंग्यात्मक लहजे में कुछ इस प्रकार कहते हैं कि पाठक के समक्ष निरंकुश सत्ता का भ्रष्ट तथा जनविरोधी तंत्र, राजकवि तथा राज्याश्रयी आश्रमों के रूप में सत्ता से जुड़े भोगवादी बुद्धिजीवी और पादुकामंत्री, सेनापति पादुका राजसभा आदि के ज़रिए तथाकथित श्रेष्ठिजनों के बीच जारी सत्ता- संघर्ष का मायावी परंतु भयानक सत्य — सब कुछ अपनी संपूर्ण नग्नता में निरावृत हो जाता है। 'पादुकाराज', 'अयोध्या' तथा 'रामराज' के बहाने ज्ञान चतुर्वेदी मात्र सत्ता के खेल और उसके चालाक कारकों का ही व्यंग्यात्मक विश्लेषण नहीं करते हैं, वे मूलतः इस क्रूर खेल में फँसे भारतीय दरिद्र प्रजा के मन में रचे- बसे उस यूटोपिया की भी बेहद निर्मम पड़ताल करते हैं, जो उस 'रामराज' के स्थापित होने के भ्रम में 'पादुका राज' को सहन

- करती रहती है, जो सदैव ही मरीचिका बनकर उसके सपनों को

छलता रहा है।

मरीचिका | Marichika

SKU: 9788126713066
₹399.00 नियमित मूल्य
₹359.10बिक्री मूल्य
स्टॉक में केवल 1 ही शेष हैं
  • Gyan Chaturvedi

अभी तक कोई समीक्षा नहींअपने विचार साझा करें। समीक्षा लिखने वाले पहले व्यक्ति बनें।

RELATED BOOKS 📚 

bottom of page