ईसा की 19 वीं सदी में प्रारम्भिक वर्षों में जब कर्नल जेम्सटाड प्रथम बार राजस्थान पहुंचा तब तक मुगल शासन काल में स्थापित अजमेर सूबे का शासकीय संगठन सर्वथा छिन्न भिन्न होकर पूर्णतया विलीन हो चुका था। छोटे बड़े सब ही राज्य अपनी मनचाही कर रहे थे। उनकी अपनी राजनैतिक महत्ता तथा सैनिक शक्ति तब कुछ भी रही हो, कौटुम्बिक महत्व और ऐतिहासिक गौरव में हर एक राजघराना स्वयं को दूसरों से किसी प्रकार से कम नहीं समझता था। अनेकानेक महत्वपूर्ण राज्यों तथा ऐतिहासिक घरानों का एक सामूहिक इतिहास लिखना यो भी बहुत कठिन होता है और तब तो राजस्थान के राज्यों तथा राजघरानों के महत्व और गौरव से टाड बहुत ही अभिभत था, अतः अपने सुप्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ "एनल्ज एण्ड एण्टिक्विटीज आफ राजस्थान" (टाड राजस्थान) में टाड ने विभिन्न राज्यों तथा उनके राजघरानों का इतिहास अलग-अलग लिखा है। यों भी अपने अपने राज्यों और राजघरानों के अलग-अलग इतिहास ग्रंथ लिखवाने के उनके प्रयत्न स्वभाविक ही थे। बाद में यह परम्परा इतनी सुदृढ़ हो गई कि टाड से एक शताब्दी बाद जब भारतीय इतिहास के प्रकाण्ड पण्डित महामहोपाध्याय डा. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा अपना वृहत इतिहास ग्रन्थ "राजपूताने का इतिहास' 11 लिखने को अग्रसर हुए तब उन्होने भी टाड का ही अनुसरण कर क्रमश: विभिन्न राज्यों के अलग-अलग इतिहास लिखे।
परन्तु ओझा का यह इतिहास ग्रंथ सम्पूर्ण नहीं हो पाया। "सिरोही राज्य का इतिहास" वे बहुत पहिले लिख चुके थे। उदयपुर, डूगरपुर, बांसवाडा तथा प्रतापगढ़ के गुहिल सिसोदिया राज्यों के इतिहास लिखे। तदनन्तर बीकानेर राज्य का इतिहास भी पूरा कर डालने के बाद उन्होंने जोधपुर राज्य का इतिहास लिखा...
कछवाहों का इतिहास | Kachhawahon ka itihas
Jagdish Singh Gehlot