प्रतिदिन अखबार की सुर्खियों में आत्महत्या की खबरें आम हैं। पूरा परिवार आत्महत्या कर रहा है तो कहीं सक्षम अधिकारी, कहीं युवा तो कहीं बुजुर्ग। क्योंकि कुण्ठा, निराशा और अवसाद जैसे मनोविकारों से ग्रस्त मनुष्य की सोचने समझने की क्षमता ही अवरुद्ध हो जाती है और इन मनोविकारों का मुख्य कारण है 'चिंता'। बेरोजगारी, बदनामी, बीमारी, पारिवारिक कलह और कर्ज जैसी समस्याएँ 'चिंता' में बदलकर विकराल रूप धारण कर लेती है।
कहा गया है कि चिंता और चिता में एक बिंदु का ही अंतर है। चिता मरे हुए को जलाती है किन्तु चिंता जीवित व्यक्ति को मशीनी युग में मनुष्य अति महत्त्वकांक्षी होता जा रहा है। इसलिए तनाव या चिंता से बचना मुश्किल है। आज चिंता जीवन की एक सामान्य समस्या बन गई है। हालाँकि चिंता सभी ओर से बुरी भी नहीं है कुछ सामान्य चिंताएँ व्यक्ति को भविष्य के खतरों से सचेत करती हैं। चिंताओं से हम व्यवस्थित और तैयार रहते हैं लेकिन जब यही चिंताएँ बढ़ जाती हैं तो शारीरिक, मानसिक रूप से जीवन को प्रभावित करने लगती हैं।
चिन्ता छोड़ो खुश रहो । Chinta Chodo Khush Raho
Swett Marden