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कभी-कभी अचानक ही विधाता हमें ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से मिला देता है, जिसे देख स्वयं अपने जीवन की रिक्तता बहुत छोटी लगने लगती है। हमें तब लगता है कि भले ही उस अन्तर्यामी ने हमें जीवन में कभी अकस्मात् अकारण ही दंडित कर दिया हो, हमारे किसी अंग को हमसे विच्छिन्न कर हमें उससे वंचित तो नहीं किया। फिर भी हममें से कौन ऐसा मानव है, जो एकान्त में, ध्यान स्तुति-जपार्चन के बीच अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नहीं ठहराता । मैंने कुछ समय पूर्व एक ऐसी अभिशप्त काया देखी थी, जिसे विधाता ने कठोरतम दंड दिया था, किन्तु उसे वह नतमस्तक आनन्दी मुद्रा में झेल रही थी, विधाता को कोसकर नहीं ।

उसकी कोठी का अहाता एकदम हमारे बँगले के अहाते से जुड़ा था । अपनी शानदार कोठी की बरसाती में उसे पहली बार कार से उतरते देखा, तो आश्चर्य से देखती ही रह गई। कार का द्वार खुला, एक प्रौढ़ा ने उतरकर पिछली सीट से एक व्हील चेयर निकाल सामने रख दी और भीतर चली गई । दूसरे ही क्षण, धीरे-धीरे बिना किसी सहारे के, कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले धड़ को बड़ी दक्षता से नीचे उतारा, फिर बैसाखियों से ही व्हील चेयर तक पहुँच उसमें बैठ गई और बड़ी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चली गई। मैं फिर नित्य नियत समय पर उसका यह विचित्र आवागमन देखती और आश्चर्यचकित रह जाती-ठीक जैसे कोई मशीन बटन खटखटाती अपना काम किए चली जा रही हो ।

जालक । Jalak

SKU: 9788183611558
₹150.00 नियमित मूल्य
₹135.00बिक्री मूल्य
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  • Shivani

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