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तिरहुत के एक गाँव की यह देखी, सुनी, भोगी कहानी हाल के अतीत और आज के बदलाव का विलक्षण चित्रण है। यह एक बहुयामी कथा है जहाँ भाँति-भाँति के प्रसंग गाँव के ठकुराने से ही नहीं, दलित टोलों के कोने-अंतरों से भी झाँकते हुए पाठक को अपनी ओर खींचते हैं। विषमताओं से लदी इस दुनिया में राजपूती दबदबा और भूमिहीनों का यथार्थ तो है ही, पनभरनी औरतों की मशक़्क़त, नाउ, मुसलमान दर्ज़ियों और ‘डाकपिन साहेब' की दिनचर्या, मछली मारने की आध-दर्जन विधाएँ, बिजली की ग़ैर-मौज़ूदगी में मोबाइल चार्ज करने के अद्भुत जुगाड़; इन सबके माध्यम से ग्रामीण पात्र मानो हमसे बातचीत करते प्रतीत होते हैं। नृविज्ञान शास्त्री एम. एन. श्रीनिवास का 'यादों से रचा गाँव’ और विश्वनाथ त्रिपाठी का 'नंगातलाई का गाँव', इन दो उत्कृष्ट रचनाओं की याद ताज़ा करती है राकेश कुमार सिंह के तरियानी छपरा की यह अजीबो-ग़रीब दास्तान। -शाहिद अमीन

बम संकर टन गनेस । Bam Sankar Tan Ganes

SKU: 9789381394359
₹150.00मूल्य
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  • Rakesh Kumar Singh

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