हम जिस समय का इतिहास लिख रहे हैं, उस समय भारत के सम्राट् “दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा” मुगल बादशाह अकबर थे। इनके पहले दिल्ली के सिंहासन पर जितने मुसलमान सम्राट् बैठे थे, उनकी नीति हिन्दुओं के प्रति खासकर वीर राजपूतों के प्रति मुसलमान स्वभाव के अनु कूल, प्रत्यक्ष विरोध करनेवाली थी, परन्तु सूक्ष्मदर्शी अकबर ने उस नीति को ग्रहण नहीं किया। साम्राज्य विस्तार की लालसा अकबर में उन लोगों की अपेक्षा बहुत बढ़ी चढ़ी थी, परन्तु ये उन लोगों की तरह दुश्मन को दबाकर न मारते थे, इनकी नीति थी मिलाकर शत्रु को अपने वशीभूत करना। इस नीति के बल पर इनको सफलता भी खूब मिली। प्रायः सम्पूर्ण राजपूताना इनके अधीन हो गया उस समय जिस वीर महापुरुष ने अकबर का सामना किया, हिन्दुओं की कीर्ति-पताका मुगलों के हाथ नहीं जाने दी, आज हम उसी लोकोज्ज्वल-चरित्र महावीर महाराणा प्रतापसिंह की कीर्ति गाथा अपने पाठकों को भेंट करते हैं।
महाराणा प्रताप | Maharana Pratap
Author
Suryakant Tripathi 'Nirala'
Publisher
Kitabeormai Publications
No. of Pages
151