सार की बात
"व्यर्थ चिन्ता क्यों करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? तुम्हें कौन मार सकता है? आत्मा न कभी मरता है और न ही पैदा होता है।"
"भूत का पश्चाताप क्यों? भविष्य की चिन्ता क्यों? वर्तमान तो चल ही रहा है, यह ही तुम्हारा है। इसमें जीना सीखो।"
"तुम न कुछ लेकर आये और न लेकर जाओगे। खाली हाथ आये,खाली हाथ चले। तुम्हारा क्या है जो तुम रोते हो?"
"परिवर्तन तो संसार का नियम है। जो जन्मा है उसकी मृत्यु होगी, जिसकी मृत्यु होगी, वह जन्म लेगा।"
"न तो यह शरीर तुम्हारा है और न तुम ही शरीर के हो। पंचभूत का शरीर इनमें ही मिल जायेगा। केवल आत्मा स्थिर है।"
"तू जो कुछ करता है, उसे परमात्मा को अर्पण करता चल। इसी में तेरा कल्याण है।"
"सब धार्मिक प्रपंचों को छोड़कर एकमात्र परमात्मा के शरण हो जाओ, फिर तुम्हारा भला-बुरा वे स्वयं देखेंगे। प्रभु का आश्रय ही परम धर्म है।"
युद्ध और ज्ञान । Yuddh aur Gyan
Chandra Kant Nagar