महान फिल्मकार सत्यजित राय द्वारा समय-समय पर लिखे गये फिल्म-सम्बन्धी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण निबन्धों का संकलन है—विषय : चलचित्र। फिल्म एक ऐसी कला-विधा है, अभिव्यक्ति का एक ऐसा माध्यम है, जिसमें साहित्य, संगीत, नाटक, चित्रकला आदि अनेक विधाओं का योग अपेक्षाकृत स्पष्टता से देखा जा सकता है। इसके बावजूद एक स्वायत्त कला-विधा के रूप में फिल्म का अपना वैशिष्ट्य है, जिसकी उपेक्षा करने पर उसके मर्म तक पहुँचना सम्भव नहीं है। इन्हीं दो बिन्दुओं को राय ने इस पुस्तक के निबन्धों में केन्द्रीय प्रस्थान-बिन्दु बनाया है जिससे एक तो फिल्म-कला की विशिष्टता उजागर हो सके और दूसरे, इस कला की सम्भावनाओं तथा सीमाओं पर विचार करने के लिए पाठक को आवश्यक बौद्धिक आधार मिल सके। पुस्तक में आये फिल्मों के वैश्विक सन्दर्भ इस आधार को व्यापकता प्रदान करते हैं। जो सहजता और रोचकता राय के कथा-साहित्य में मिलती है, वह उनके इस कथेतर गद्य में भी पूरी तरह मौजूद है। फिल्म के सैद्धान्तिक तथा तकनीकी पक्ष पर लिखते हुए भी राय ने अनौपचारिकता बरकरार रखी है। इससे जो भाषिक प्रवाह निर्मित हुआ है, वह इसके पाठ को कहीं बोझिल नहीं होने देता।
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