मैं एक-एक घूंट कर स्पाकर्लिंग वाटर का आनंद लेता रहा। इसमें उठते बुलबुलें मुझे मानवीय मस्तिष्क में उठ रही इच्छाओं के आवेग का स्मरण करवा रहे थे। जब तक जलस्तर शांत न हो जाए, बुलबुले तो उठते ही रहते हैं. परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मुझे अपना पेय हडबडाहट में ही समाप्त करना होगा। महत्वाकांक्षाओं तथा इच्छाओं के बुलबुले, स्थितियों व परिस्थितियों, विचारों एवं भावनाओं के बुलबुले उठते ही रहेंगे, किंतु मेरे पास मनोवांछित गति से अपने पेय का घूंट-घूंट आनंद उठाने का विकल्प उपस्थित था। वे बुलबुले अच्छे थे, यहां तक कि वे जरूरी भी थे। उनसे विमुख होने की बजाए उनका आनंद लेना चाहिए, क्योंकि सबसे पहले उन्होंने ही शांत जलस्तर में एक अनोखी चमक पैदा की थी।'
सत्य कहूं तो । Satya Kahun To (If Truth Be Told)
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Om Swami
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