बरसात के दिन है, सावन का महीना । आकाश में सुनहरी घटाएँ छाई हुई हैं । रह-रहकर रिमिझिम वर्षा होने लगती है । अभी तीसरा पहर है; पर ऐसा मालूम हों रहा है, शाम हो गयी । आमों के बाग़ में झूला पड़ा हुआ है । लड़िकयाँ भी झूल रहीं हैं और उनकी माताएँ भी । दो-चार झूल रहीं हैं, दो चार झूला रही हैं । कोई कजली गाने लगती है, कोई बारहमासा……..
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