
"हत्या" जो कि हमें इसके शीर्षक से ही जान में पड़ता है, एक ऐसी अपराध कथा है, जिसे आप जैसे-जैसे पढ़ते जाते हैं वैसे-वैसे ही इसके अनेक पहलू खुलते रहते है, और आप को ये लगने लगता है कि बस अब कातिल पकड़ने में ही आने वाला है। लेकिन वो पहलू इस कहानी को और रोमांचित करके किसी दूसरी दिशा में ले जाता है।
तकरीबन 14 अध्यायों में बटी यह कहानी, हर अध्याय के अन्त के साथ आपको यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर हम कैसे समाज में रहते हैं, और किसी के भी सपने पूरे करने की महत्वाकांक्षा, उसके शोषण का रूप कैसे ले लेती है और सभी उस शोषण को सत्य भी मान लेते हैं कि इसके साथ तो यही होना था।
दिल्ली के नज़दीक एक फार्महाउस में एक स्त्री की हत्या की जब पुलिस जाँच शुरू होती है, तो एक तरफ पुलिस है जो सिर्फ जल्द से जल्द केस को बन्द करना चाहती है और वहीं एक ओर है एक निलंबित पुलिस अधिकारी है जो अपने निलंबन के केस के साथ-साथ उस स्त्री की हत्या की गुत्थी को भी सुलझाना चाहता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, तो इसका एक सिरा बड़े लोगों की ज़िन्दगी को इस हत्या से कोई फर्क ना पड़ने वाले और उनके अजीबों गरीब कारनामों से जुड़ते चले जाते हैं और दूसरा सिरा एक स्त्री की महत्वकांक्षा और शोषण को बयान करता है।
इस उपन्यास में दो कहानियाँ है एक उस स्त्री की महत्वकांक्षा और शोषण की और दूसरी उस स्त्री की जो परिवार का भरण पोषण करती है और फिर भी हर बार अपने परिवार जनों से गालियाँ सुनती है।
यह उपन्यास पढ़ते हुए महसूस होता है कि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहाँ हमारी आँखों के सामने सब होते हुए भी हम उसे अनदेखा कर देते हैं, सब कुछ जानते बूझते हुए भी अनजान बने हुए हैं, और कुछ नहीं समझते हैं।
"हत्या" केवल एक स्त्री की हत्या का आख्यान न होकर समाज में, परिवार में हमारे एक दूसरे से संबंधों के साथ जाति, वर्ग और लिंग पर भी सवाल उठाता है।
यह उपन्यास अनेक आन्दोलनों से जुड़ी और पत्रकार अंजली देशपांडे का दूसरा उपन्यास है। इनका पहला उपन्यास अंग्रेजी में इम्पीचमेंट और हिंदी में महाभियोग शीर्षक के साथ भोपाल गैस त्रासदी की पृष्ठभूमी को दर्शाता है।
पुस्तक विवरण
शीर्षक - हत्या
लेखक - अंजली देशपांडे
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़
मूल्य - ₹265/-
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