व्याकरण की यह पुस्तक हिन्दी और संस्कृत के उद्भट विद्वान तथा शब्द एवं भाषा विज्ञान के अधिकारी ज्ञात पंडित कामता प्रसाद गुरु द्वारा प्रणीत है। यह सर्वांगपूर्ण व्याकरण तो है ही, पूर्णतः प्रामाणिक भी है। आधुनिक हिन्दी की शब्द-रचना, वाक्य-विन्यास तथा भाषा के विभिन्न अंगों पर सांगोपांग रूप से प्रकाश डाला गया है। विद्वान लेखक ने भिन्न भाषाओं के व्याकरणों को दृष्टि में रखकर इस पुस्तक को सर्वसम्मत बनाने हेतु प्रशंसनीय परिश्रम एवं साधना की है। भाषा, व्याकरण, हिन्दी की उत्पत्ति, वर्ण, शब्द, वाक्य-रचना, विरामचिह्न आदि सभी पर सोदाहरण, प्रकाश डाला गया है। लिंग, वचन, कारक, संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया, व्यय सभी प्रकरण को बोधगम्य भाषा में उपयुक्त उदाहरण सहित स्पष्ट किया गया है। अन्त में काव्य रचना एवं काव्य स्वतन्त्रता पर भी उपयुक्त उदाहरण के साथ प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी व्याकरण का गौरव-ग्रन्थ है। इसी विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि अपनी उपयोगिता व प्रामाणिकता के कारण यह सर्वप्रिय और मानक है।
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