यह ऐतिहासिक उपन्यास तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में दिल्ली सल्तनत के सर्वाधिक शक्तिशाली शासक अल्लाउद्दीन खिलजी एवं स्वर्णगिरी दुर्ग (जालोर) के महाप्रतापी महाराजा कान्हड़देव के कालखण्ड की है। इस कालखण्ड में बार-बार आक्रमण के बावजूद अभेद्य स्वर्णगिरी दुर्ग खिलजी द्वारा फतेह नहीं किया जा सका, फलस्वरूप समझौते के तहत स्वर्णगिरी दुर्ग के कुँवर वीरमदेव को दिल्ली दरबार में सम्मान पूर्वक शान्ति स्थापित करने के लिए भिजवाया गया।
दिल्ली प्रवास के दौरान राजकुँवर वीरमदेव पर बादशाह खिलजी की पुत्री शहज़ादी फ़ीरोज़ा आशक्त हो गयी और इस तरह बेमेल इश्क की गलबहिया भीषण युद्ध में तब्दील हो गई। यह उपन्यासिक कृति इसी घटना पर आधारित हैं।
लेखक की जन्म भूमि एवं कर्म स्थली इसी घरा पर ही होने के कारण प्रचलित किवदन्तियों एवं अन्य सामरिक घटनाओं को मौलिक सार्वभौमिक रूप में शब्द सौन्दर्य एवं बिम्बों के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित यह उपन्यास कथ्य, भाषा, शिल्प और शैली की दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण और बेजोड़ हैं।
शहज़ादी फ़िरोज़ा | Shahzadi Firoza
Author
Purushottam Pomal
Publisher
Devnagar Prakashan
No. of Pages
216