पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने समुद्रगत् जल की सृष्टि करके उसकी रक्षा के लिए अनेक प्रकार के जल जन्तुओं को उत्पन्न किया। वे जल जन्तु भूख प्यास से पीड़ित होकर ब्रह्माजी के पास गये तथा कहा कि विधाता! बतायें, अब हम क्या करें। तब ब्रह्माजी ने कहा कि जल जन्तुओं तुम यत्नपूर्वक इस जल की रक्षा करो। जब जल जन्तुओं में से कुछ ने कहा कि "हम इस जल की रक्षा करेंगे, कुछ ने कहा कि हम इसका यक्षण (पूजन) करेंगे। तब ब्रह्माजी ने कहा कि जल की रक्षा करने की बात जिन्होंने कही है वे राक्षस नाम से प्रसिद्ध होंगे तथा जिन्होंने यक्षण की बात कही है वे यक्ष नाम से विख्यात होंगे। तभी से वे सब जीव जन्तु राक्षस एवं यक्षों में विभाजित हो गये।
जो राक्षस बने उनमें हेति एवं प्रहेति
नाम से दो भाई थे। जो समस्त राक्षसों के
अधिपति बने। हेति के एक पुत्र उत्पन्न हुआ
जिसका नाम विद्युत्केश था । विद्युत्केश के पुत्र सुकेश ने देववती के गर्भ से तीन पुत्र उत्पन्न किये जिनके नाम माल्यवान्, सुमाली एवं माली थे। ये तीनों ही अग्नियों के समान तेजस्वी थे। तीनों भाइयों ने भगवान विष्णु के साथ बड़ा भयंकर बुद्ध किया। अंत में इन सबको भगवान ने इतना भयभीत तथा पराक्रमहीन कर दिया कि उन्हें लंका छोड़कर भागना पड़ा और तीनों भाई अपने परिवारों के साथ लंका छोड़कर पाताल में रहने के लिए चले गये। कुछ काल के पश्चात् राक्षसराज सुमाली अपनी सुन्दरी कन्या कैकसी के साथ पाताल से बाहर आया। पिता की आज्ञानुसार कैकसी महामुनि विश्रवा के आश्रम पर जाकर एक स्थान पर हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी।
दशानन | Dashanan
Hari Singh