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विन्ध्याचल पर्वत पध्यरात्रि के निविड़ अन्धकार में काले देव की भाँति खड़ा था। उस पर उगे हुए छोटे-छोटे वृक्ष इस प्रकार दृष्टिगोचर होते थे, मानों ये उनकी जटाएँ हैं और अष्टभुजा देवी का मंदिर, जिसके कलश पर श्वेत-पताकाएँ वायु की मन्द मन्द तरंगों से लहरा रही थीं, उस देव का मस्तक है। मन्दिर में एक झिलमिलाता हुआ दीपक था, जिसे देखकर किसी धुंधले तारे का भान हो जाता था।

अर्द्धरात्रि व्यतीत हो चुकी थी। चारों ओर भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। गंगाजी की काली तरंगें पर्वत के नीचे सुखद प्रवाह से बह रही थीं। उनके बहाव से मनोरंजक राग की ध्वनि निकल रही थी।

वरदान | Vardan

SKU: 9788180351471
₹80.00Price
Only 1 left in stock
  • Author

    Munshi Premchand

  • Publisher

    Parag Prakashan

  • No. of Pages

    152

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