"हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की दीर्घकालीन परंपरा में आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित यह इतिहासग्रंथ अत्यंत प्रामाणिक, संतुलित और सभी प्रकार की शोधसामग्रियों से समन्वित माना जाता है। यद्यपि इसके पहले और पश्चात् अनेक इतिहासग्रंथ लिखे गये हैं किन्तु उनमें साहित्य के इतिहासलेखन की वह चमक अथवा वैज्ञानिक पद्धति की वह प्रवृत्ति नहीं आ सकी है जिसके कारण कोई भी इतिहासग्रंथ अपना एक आदर्श स्वरूप ग्रहण कर सकता है। शुक्लजी ने अपने पूर्ववर्ती इतिहासकारों द्वारा संचित और संग्रहीत सामग्री का आकलन कर इतिहासलेखन की जो रूपरेखा तैयार की थी, उसकी योजना के अनुसार ही उन्होंने हिन्दी साहित्य के उद्भव और विकास का कालविभाजन करते हुए उसकी विभिन्न प्रवृत्तियों के संदर्भ में अपना यह ग्रंथ लिखा है जो प्रायः आठ दशक बीत जाने के पश्चात् भी आज तक प्रासंगिक एवं उपयोगी बना हुआ है। विश्व का कोई भी ऐसा विश्वविद्यालय नहीं है जहाँ इस ग्रंथ को वहाँ के पाठ्यक्रम में स्वीकृत न किया गया हो। इस समय उस महान ग्रंथ के अप्राप्य होने के कारण ही हमने उसके पुनर्प्रकाशन की व्यवस्था की है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास | Hindi Sahitya ka Itihas
Aacharya Ramchandra Shukl