हिन्दी साहित्य के जन कवियों में महात्मा कबीर का नाम अग्रगण्य है। वस्तुतः कबीर की क्रान्तदर्शिता और निर्लेप अभिव्यक्ति उनके लोकप्रिय होने का प्रमुख कारण है। कबीर ने सारखी, पद और रमैनी में अपनी अनुभूतियों को साकार किया है।
मानवतावादी दृष्टिकोण, आडंबरविहीन अभिव्यंजना, लोकहित भावना और आचरण की पवित्रता आदि ऐसी अनेक विशेषताएँ हैं। जो कबीर की वाणी को मुखर बनाने में सक्षम हैं।
नयी पीढ़ी के मध्य कबीर कुछ अनजाने से हो गए हैं। संभवतः इसका कारण कबीर के हठयोगी पक्ष का प्रकटीकरण और साहित्य संक्रियाओं से उनका तिरोभाव है।
प्रस्तुत पुस्तक में कबीर के सरल और सरस पक्ष को ध्यान में रखते हुए कतिपय साखियों का संकलन कर उनका सरलार्थ भी किया गया है ताकि उन्हें सरलता से हृदयंगम किया जा सके और कबीर साहित्य के प्रति बालक-बालिकाओं की रुचि जाग्रत हो सके। कबीर की शाश्वत उक्ति है-
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का पढे सो पडित होय।।
आज जीवन मूल्यों को जानने-समझने की महत्ती आवश्यकता है। संत कवियों ने अपनी मोहक वाणी में प्रेरक मूल्यों की स्थापना की है। कबीर की साखियों को एक नए रूप में जान सकेंगे, पहचान सकेंगे और समझ सकेंगे।
विद्यालयों, महाविद्यालयों और साहित्यानुरागियों के उपयोगार्थ एक महनीय कृति...
- प्रीतम प्रसाद शर्मा
-प्रणु शुक्ला
कबीर के सुबोध दोहे | Kabir Ke Subodh Dohe
Preetam Prasad Sharma