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इतनी देर तक द्विजदास एक प्रकार की हिचक के कारण लजाया हुआ- सा खड़ा रहा। अपरिचित युवती के सामने क्या करना और क्या कहना उचित होता है, वह कुछ भी समझ नहीं पा रहा था। इससे पहले अवसर कभी आया ही नहीं था। जरुरत नहीं पड़ी थी, लेकिन नवागता युवती की चकित कर देने वाली स्वछन्दता से उसे जैसे एक नई दिशा मिल गई हो उसकी अकारण और अशोभन जड़ता पल- भर में दूर हो गई। उसे एक स्वच्छ आनन्द का स्वाद मिला। लड़कियों को भी शिक्षा और स्वाधीनता की आवश्यकता है, इसे वह सदा ही स्वीकार करता रहा था। माँ तथा बड़े भैया से बहस छिड़ जाने पर वह यही दलील दिया करता था कि नारी के होने के कारण ही वह पुरुष है। शिक्षा और स्वतंत्रता पर उनका भी पूरा अधिकार है। उन्हें मूर्ख बनाकर घरों में बन्द रखना अन्याय है।

विप्रदास | Vipradas

SKU: 9789383248292
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  • Sharatchandra Chattopadyay

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