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औरंगजेब ने देखा कि इस लड़की को भय दिखाने से काम न चलेगा। इसे प्रलोभन देना चाहिए। वह बोले, 'चलो मान लिया कि मैं तुम्हें सजा न दूँगा। तुम्हें धन-दौलत देकर विदा कर दूँगा। तुम सब बातें सही-सही बता दो।'

'राजपूत-कन्याओं को जैसे मृत्यु का भय नहीं होता, वैसे ही धन-दौलत का भी उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। आप मुझे विदा करें।

हवा ने जेबुन्निसा के कमरे में प्रवेश कर वहाँ की सब बत्तियों को बुझा दिया। जेबुन्निसा भयभीत हो उठी, परन्तु फिर उसने सोचा कि वह डरे क्यों? अभी-अभी वह मृत्यु की बात सोच रही थी। जो मृत्यु चाहे, वह भयभीत क्यों हो?

जेबुन्निसा पलंग पर बैठी थी। उसे एक चींवटी ने काट लिया। जेबुन्निसा के बदन में कुछ जलन-सी हुई। वह अपने मन में सोचने लगी कि चींवटी के काटने से वह छटपटा उठी। वह चींवटी का काटना भी सहन न कर सकी और उसने प्राणों से भी प्रिय व्यत्ति को साँप से काटे जाने के लिए भेज दिया।

राजसिंह | Rajsingh

SKU: 9788190473132
₹150.00 Regular Price
₹127.50Sale Price
Only 1 left in stock
  • Author

    Bankimchandra Chattopadyay

  • Publisher

    Parag Prakashan

  • No. of Pages

    72

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