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हम पाठशालाओं को शिक्षा देने की एक प्रकार की कल या कारखाने समझते हैं। अध्यापक लोग इस कारखाने के एक प्रकार के पुर्जे हैं। साढ़े दस बजे या दस बजे घंटा बजाकर कारखाने खुलते हैं। पुर्जों का चलना आरम्भ हो जाता है और अध्यापकों की जबान भी चलने लगती है। चार बजे कारखाने बंद हो जाते हैं। पुर्जे अर्थात् अध्यापक भी अपनी जबान बन्द कर लेते हैं। उस समय विद्यार्थी भी इन पुर्जों की कटी-छटी दो-चार पृष्ठ की शिक्षा लेकर अपने-अपने घरों को वापस चले जाते हैं। इसके पश्चात् परीक्षा के समय विद्यार्थी की बुद्धि का अनुमान लगाया जाता है। अतः इस पर 'मार्क' अथवा नम्बर लगा दिए जाते हैं।

कारखानों या मशीनों में एक बड़ी विशेषता यह हुआ करती है कि जिस नाप या वजन की अथवा जिस प्रकार की वस्तु की आज्ञा दी जाती है, ठीक उसी प्रकार की वस्तु तैयार हो जाती है। एक कारखाने में बने हुए सामान में और दूसरे कारखाने में बने हुए सामान में विशेष अन्तर नहीं होता और इससे नम्बर लगाने में बड़ी सुगमता रहती है।

शिक्षा | Shiksha

SKU: 9789382907213
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  • Rabindranath Tagore

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