'प्रतिज्ञा' उपन्यास विषम परिस्थितियों में घुट घुट कर जो रही भारतीय नारी की विवशताओं और नियति का सजीव चित्रण है। प्रतिज्ञा का नायक विभुर अमृतराय किसी विधवा से शादी करना चाहता है ताकि किसी नवयौवना का जीवन नष्ट नाही । नायिका पूर्णां आश्रयहीन विधवा है। समाज के भूखे भेड़िये उसके संचय को तोड़ना चाहते हैं। → वनिता- भवन में जाकर पूर्णा मानसिक शान्ति का अनुभव करती है। वह भवन विधवाओं का आश्रम ही नहीं, उनका प्रशिक्षणाय भी है, वह विधवाओं की बनी चीजों की विक्री होती है और इससे उन्हें स्वावलम्बन का अनुभव भी होता है जब दाननाद अपने मित्र को प्रतिज्ञा की याद दिलाते हैं तब अमृतराय वनिता भवन की ओर दिखाकर सूचना देते है कि अब उसका निर्वाह करने में ही प्रतिज्ञा पूरी होगी। दाननाद जानते है कि अब अमृतराय आजीवन अविवाहित
रहकर समाज सेवा करेंगे। उपन्यास में प्रेमचंद ने विधवा समस्या को नए रूप में प्रस्तुत किया है एवं विकल्प भी सुझाया है।
प्रेमचन्द ने विधवा समस्या का समाधान अर्थिक स्ववलम्बन में दिखाया, जो आचरणात्मक है। प्रेमचन्द ने अपने जीवन में स्वयं एक बाल- विधवा से विवाह करके समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत किया। प्रस्तुत उपन्यास की भाषा सरल और व्यावहारिक है। कहावतों और मुहावरों के प्रयोग से उपन्यास सजीव बन पड़ा। हर दृष्टि से यह उपन्यास प्रेमचन्द की उत्तम कृतियों में से एक है।
प्रतिज्ञा | Pratigya
Munshi Premchand