अकबर को महान् मुगल सम्राट के रूप में आज भी याद किया जाता है। अकबर विद्वानों का बहुत ही आदर करता था एवं उनको योग्यता के अनुसार पद एवं पुरुस्कार भी देता था।
एक समय अकबर इलाहाबाद की तरफ से आ रहा था उसने गंगा के किनारे अपना डेरा लगाया। इलाहाबाद के पास ही अन्धेरी नगरी का राजा चौपट था, उनका मंत्री बीरबल था। अकबर ने अन्धेरी नगरी के राजा के यहाँ सन्देश भिजवाया। सन्देश से ही चौपट राजा डर गया कि कहीं बादशाह अकबर मेरे राज्य पर कब्जा करने तो नहीं आया है।
चौपट राजा ने अपने मंत्री बीरबल से सलाह मशवरा करके दोनों अकबर के पास मिलने गये। बीरबल ने जाने से पहले बादशाह के पास महल निर्माण की सामग्री इत्यादि भिजवा दी थी- अकबर ने चौपट से पूछा- तुमने ऐसा क्यों किया। राजा चौपट ने कहा- ऐसा मैंने नहीं किया-मेरे मंत्री बीरबल ने भिजवाया है। बीरबल तपाक से बोले-हाँ महाराज मुझे ऐसा मालूम था कि आप गंगा के तट पर महल बनवाना चाहते हैं इसलिये मैंने भवन निर्माण सामग्री भिजवा दी ।
अकबर ने बीरबल का जवाब सुनने पर महसूस किया कि बीरबल एक विद्वान् एवं बुद्धिमान व्यक्ति है। वे उसे चौपट से कहकर अपने साथ राजधानी ले आये और अपने नवरत्नों में बीरबल को शामिल कर लिया। फिर तो अकबर के दरबार में अक्सर बीरबल के किस्से होने लगे। बीरबल की बुद्धि का कोई जवाब नहीं था। उनकी हाजिर जवाबी का कोई मुकाबला नहीं था, उनके प्रत्येक जवाब में कोई न कोई उद्देश्य होता था।
इस पुस्तक में ऐसे 72 किस्सों का संकलन किया गया है। ये किस्से मात्र रोचक न होकर मनोरंजक एवं बुद्धि के विकास में भी सहायक हैं। इस पुस्तक को पढ़ने पर विद्यार्थियों एवं पाठकों के नैतिक मूल्यों का विकास होगा- ऐसा मेरा प्रया
अकबर-बीरबल के रोचक किस्से | Akbar-Birbal Ke Rochak Kisse
Purna Singhvi