कालिदास की नाट्यकला का चरम परिपाक है शाकुन्तलम् । महाभारत कथा पद्मपुराण की संक्षिप्त कथा को कालिदास ने नाटकीय ढंग से सजाया है। एक बार राजा दुष्यन्त शिकार खेलते हुए कण्व के आश्रम में पहुँच जाते हैं। वहाँ वृक्षों को सींचती मुनि-कन्याओं को देखते हैं। शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त शकुन्तला के प्रति आकृष्ट हो जाते हैं। इस बीच एक अविनीत-भ्रमर शकुन्तला के आस-पास घूमने लगता है। शकुन्तला भयभीत होकर भागने लगती है तथा दोनों सखियाँ चीत्कार करने लगती है। लताओं की ओट में छिपे दुष्यन्त प्रकट होते हैं और भँवरे को भगा देते हैं। यहाँ शकुन्तला के हृदय में भी राजा के प्रति आकर्षण हो जाता है। राजा स्वयं को दुष्यन्त का सामन्त बताता है। इसी अंक में राजा को ज्ञात हो जाता है कि शकुन्तला विश्वामित्र एवं मेनका की पुत्री है तथा यह क्षत्रिय के परिग्रह के योग्य है।
अभिज्ञान शाकुन्तलम् | Abhigyan Shakuntalam
Aacharya Umesh Shashtri