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इस कहानी संग्रह में एक ओर जहाँ भारतीय संस्कृति और सभ्यता के आहत संदर्भों की तीव्र तीखी टीस है तो दूसरी ओर वर्तमान उपभोक्तावाद में संलिप्त परिवारों के बीच पनप रही वैमनस्यता, स्वार्थपरता और टूटन के बेसुरे स्वरों का दर्द भी है।

* इसके साथ उपेक्षित, पीड़ित और त्रस्त नारी के आहत मन की दबी-घुटी आहें और हृदय विदारक सिसकारियाँ भी हैं ।

* वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति, आधुनिक जीवन शैली और आहत परम्पराओं से उत्पन्न संर्दभों के तीखे दर्द की पीड़ा का अहसास कराते है। वहीं सामाजिक और पारिवारिक टूटते- जुड़ते रिश्ते एक नवीन दिशा की और इंगित करते है।

अवर्णा | Awarna

SKU: 8190248030
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  • Prahlad Singh Rathore

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