जय तथा पराजय की महागाथा...
रामायण की कथा असंख्य बार कही गई है।
प्रत्येक भारतीय, ईश्वर के अवतार राम की सम्मोहित कर देने वाली कथा के विषय में जानता है, जिन्होंने अंधकार रूपी दुष्ट राक्षस, रावण का वध किया। इतिहास के पृष्ठों में, सदा की भाँति, विजेताओं द्वारा सुनाया गया संस्करण ही जीवित रह पाता है। पराजितों का स्वर कहीं मौन के बीच खोया रहता है।
परन्तु यदि रावण व उसकी प्रजा के पास सुनाने के लिए कोई अन्य कथा हो तो ?
रावणायन की कथा कभी नहीं कही गई।
असुर, पराजित असुर जाति की महागाथा है, एक ऐसी कथा जिसे भारत के दमित व शोषित जातिच्युत पिछले तीन हज़ार वर्षों से सँजोते आ रहे हैं। आज तक, किसी भी असुर ने अपनी कथा सुनाने का साहस नहीं किया है। परंतु संभवतः अब समय आ गया है कि मृतक तथा पराजित भी अपनी कथा सुनाने के लिए आगे आएँ।
"हज़ारों वर्षों से मुझे अपमानित किया जा रहा है और भारत के प्रत्येक कोने में, साल-दर-साल मेरी मृत्यु का समारोह मनाया जाता रहा है। क्यों? क्या इसलिए कि मैंने अपनी पुत्री को पाने के लिए देवों को चुनौती दी थी? क्या इसलिए क्योंकि मैंने एक संपूर्ण वंश को जाति पर आधारित देवों की पराधीनता से मुक्त किया था? आपने विजेता की कथा, रामायण को सुना है। अब आप रावणायन सुनें, क्योंकि मैं रावण हूँ, असुर हूँ और मेरी कथा पराजितों की कथा है।"
"मैं एक अस्तित्व-हीन, अदृश्य, शक्तिविहीन तथा तुच्छ प्राणी हूँ। मेरे विषय में कभी कोई महाग्रंथ नहीं लिखे जाएँगे। मैं रावण तथा राम, दोनो के ही हाथों प्रताड़ित हुआ हूँ नायक व खलनायक अथवा खलनायक व नायक। जब महान व्यक्तियों की कथाएँ कही जाएँगी तो संभवतः मेरा स्वर इतना क्षीण होगा कि सुना ही न जा सके।
असुर - पराजितों की गाथा । Asur - Parajiton Ki Gatha
Anand Neelkanthan