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‘आगरा बाज़ार’ में हबीब ने कहीं भी शास्त्र सम्मत नाट्यरूढियों का प्रयोग न कर ‘लोक’ की प्रतिष्ठा की ओर उन्मुख हुए हैं। इसमें न तो कोई पात्र नायक के रूप में उभरता है और न ही नायिका के। कथानक संगठन की कार्यावस्था, अर्थप्रकृति और संधि जैसी नियमावली नियमबद्धता ही अधिक है, रचनात्मक प्रयोग कम। पश्चिम की नाट्य-पद्धतियों को हबीब इस नाटक में स्वीकार नहीं करते हैं। वास्तव में संस्कृत और पश्चिम के नाटकों की नाट्यकला का परिचय तो हबीब को ‘आगरा बाज़ार’ की रचना और प्रस्तुति के बाद हुआ। “इस जमाने तक मैं न तो ब्रेख्त के ड्रामों से परिचित हो पाया था और न ही मैंने उस वक्त तक संस्कृत ड्रामों का अध्ययन किया था। नाटक की इन दोनों परंपराओं का परिचय मैंने 1955 में किया।” ‘आगरा बाज़ार’ की रचना तक हबीब की दृष्टि इस ओर थी कि किस तरह नाटक को अधिक से अधिक जनसामान्य से जोड़ा जाए क्योंकि जन से जुड़े बिना उन तक अपने नाटक को ले जाना असंभव ही था। इस प्रयास में उन्होंने अपनी रंगदृष्टि विकसित की जिसका परिणाम है ‘आगरा बाज़ार’।

आगरा बाज़ार | Agra Bazar

SKU: 9789387024939
₹295.00 Regular Price
₹265.50Sale Price
Out of Stock
  • Habib Tanveer

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