शान्तिनिकेतन, गुरुदेव कवीन्द्र श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर की सर्वोत्तम कृति मानी जाती है। यद्यपि उन्होंने उच्चकोटि के तथा विविध विषयों के ग्रंथों का निर्माण किया था, तथापि भारतीय शिक्षा क्षेत्र में, उनके शान्तिनिकेतन तथा विश्वभारती का जो प्रभाव पड़ा, वह निःसन्देह अत्यन्त व्यापक था । कितने ही हिन्दी भाषा-भाषी छात्रों और अध्यापकों को शान्तिनिकेतन में
पढ़ने-पढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था और उनमें से कितनों ने उन संस्थाओं के बारे में संस्मरण लिखे हैं उनमें से कुछ को पढ़ने का मौका मुझे मिला है। आचार्य श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी ने इस विषय पर काफी लिखा है और में भी कई बार लिख चुका हूँ। पर अब तक, शान्तिनिकेतन के विषय में जितने लेख मेरे पढ़ने में आए हैं उनमें श्रीमती शिवानी की यह पुस्तक मुझे सर्वोत्तम जँची है। यह आश्चर्य की बात है कि आश्रम की एक छात्रा, सबसे आगे बढ़कर, बाजी मार ले गई और प्रतिष्ठित कहे जानेवाले लेखक पिछड़ गए। बन्धुवर हजारीप्रसादजी तो यह कहकर सन्तोष कर सकते हैं-शिष्यात् इच्छेत् पराजयम्।' अर्थात् शिष्य से पराजय की इच्छा करे, पर मेरे जैसा व्यक्ति, जो आश्रम में सर्वप्रथम 1918 में गया था और जो वहाँ चौदह महीने रहा भी था, अपने को क्षमा नहीं कर सकता।
शिवानी की असाधारण सफलता का मुख्य कारण यही प्रतीत होता है कि हर चीज को सूक्ष्म दृष्टि से देखने की क्षमता उनमें विद्यमान है, भाषा पर उन्हें अधिकार है और अपने हृदगत् भावों को वे ज्यों का त्यों प्रकट कर सकती हैं। इस पुस्तिका को पढ़कर, हमारे मन में सबसे पहले यही भाव आया कि हमने ऐसी किताब क्यों नहीं लिखी। पर हम इतनी सफलतापूर्वक लिख भी सकते या नहीं, यह प्रश्न ही दूसरा है।
आमादेर शान्तिनिकेतन । Amader Shantiniketan
Shivani