कुमारसम्भव एक उच्चकोटि का काव्य है। काव्य का प्रारम्भ हिमालय-वर्णन से होता है। इस वर्णन को पढ़कर ऐसा कहना पड़ता है कि कवि ने हिमालय को अवश्य देखा होगा।
यह महाकाव्य सत्रह सर्गों में विभक्त हैं। इसमें शिव-पार्वती का विवाह, कार्तिकेय का जन्म तथा इन्ही के सेनापतित्व में देवताओं और तारकासुर का युद्ध का वर्णन है। इसकी रचना रघुवंश से पहले हुई है-ऐसा विद्वानों का मत है। कार्तिकेय (कुमार) के जन्म की घटना पर इसका नाम कुमारसम्भवम रखा गया है।
प्रथम सर्ग का प्रारम्भ हिमालय वर्णन से होता है। हिमालय और मेना से पार्वती का जन्म होता है। नारदजी हिमालय के घर जाते हैं पार्वती को देखकर कहते हैं कि वह एक दिन शिवजी की पत्नी होगी। शिवजी हिमालय पर तप करते हैं। पार्वती उनकी शुश्रूषा करती हैं। द्वितीय सर्ग में तारकासुर से पीड़ित होकर सब देवता ब्रह्माजी के पास जाते हैं उन्हें पार्वती के द्वारा शिवजी के मन को आकर्षित करने की सलाह देते हैं। इन्द्र कामदेव की सहायता लेने के लिए उनको अपने पास बुलाते हैं। तृतीय सर्ग में मदनदहन और चतुर्थ सर्ग में रति-विलाप का वर्णन हैं। पंचम सर्ग में पार्वती पिता की आज्ञा से तप करने जाती हैं। शिवजी ब्रह्मचारी के वेष में उसकी परीक्षा लेने आते हैं। वे शिवजी की निन्दा करते हैं। पार्वती क्रुद्ध होकर वहाँ से जाना चाहती हैं। शिवजी प्रसन्न होकर अपने असली रूप में प्रकट होते हैं और अपना प्रणय व्यक्त करते हैं। षष्ठ सर्ग में अंगिरा प्रभृति ऋषि शिव की ओर से मँगनी करने के लिए हिमालय के पास जाते हैं।....
कुमारसंभवम् । Kumarsambhavam
Aacharya Umesh Shashtri