"एक बुजुर्ग ने मुझे रोक कर कहा- 'कालिन्दी पढ़ रहा हूँ।... आहा कैसा चित्र खींचा है। उन दिनों का। लगता है एक बार फिर उसी अल्मोड़ा में पहुंच गया हूँ।' "मुझे लगा मुझे कुमाऊँ का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार मिल गया।"...शिवानी के यह शब्द
उपन्यास की पाठकों तक सहज पहुँच और स्वयं उनकी अपने लाखों सरल, अनाम पाठकों
के प्रति अगाध समर्पण भाव का आईना है ।
डॉक्टर कालिन्दी एक स्वयंसिद्धा लड़की है, जिसने अपने जीवन के झंझावातों से अपनी शर्तो पर मुकाबला किया। कुमाऊँ की स्त्री शक्ति के सुदीर्घ शोषण और उसकी अदम्य सहनशक्ति और जिजीविषा का दस्तावेज़ यह उपन्यास नए और पुराने के टकराव और पुनसृजन की गाया भी है। शिवानी की मातृभूमि अल्मोड़ा और उस अंचल के गाँवों की मिट्टी बयार की गंध से भरी कालिन्दी की व्यथा कथा भारत की उन सैकड़ों लड़कियों की महागाया है, जो आधुनिकता का स्वागत करती हैं, लेकिन परम्परा की डोर को भी नहीं काट पातीं। अपने फुष उत्पीड़कों और शोषकों के प्रति भी अनवक स्नेह-ममत्व बनाए रखनेवाली कालिन्दी और उसकी एकाकिनी माँ अन्नपूर्णा क्या आज भी देश के हर अंचल में मौजूद नहीं?
कालिंदी । Kalindi
Author
Shivani
Publisher
Radhakrishna Prakashan
No. of Pages
196