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संसार में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो उपन्यास को इतिहास की दृष्टि से पढ़ते हैं। उनसे हमारा यह निवेदन है कि जिस तरह इस पुस्तक के पात्र कल्पित हैं, उसी तरह इसके स्थान भी कल्पित हैं। बहुत सम्भव है कि लाला समरकान्त और अमरकान्त, सुखदा और जैना, सलीम और सकीना नाम के व्यक्ति संसार में हो; पर कल्पित और यथार्थ व्यक्तियों में वह अन्तर अवश्य होना, जो ईश्वर और ई के बताये हुए मनुष्य की सृष्टि में होना चाहिए। उसी भाँति इस पुस्तक के काशी और हरिद्वार भी कल्पित स्थान है और बहुत संभव है कि उपन्यास में चित्रित घटनाओं और हयों को संयुक्त प्राणा के इन दोनों तीर्थ स्थानों में आप ज पा सकें। हम ऐसे चरित्रों और स्थानों को ऐसे नाम आविष्कार न कर सके, जिनके विषय में यह विश्वास होता कि इनका कहीं अस्तित्व नहीं है तो फिर अमरकान्त और काशी ही क्या बुरी। अमरकान्त की जगह टमरकान्त हो सकता था और काही की जगह टासी, या दुमदल, या डम्पू, लेकिन हमने ऐसे-ऐसे विचित्र नाम सुने हैं कि ऐसे नामों के व्यक्ति या स्थान निकल आयें, तो आश्चर्य नहीं। फिर हम अपने झोपड़े का नाम 'शान्ती उपवन' और 'सन्त धाम रखते हैं और अपने सहियल पुत्र का रामचन्द्र या हरिश्चन्द्र, तो हमने अपने पात्र और स्थानों के लिए सुन्दर से सुन्दर और पवित्र से पवित्र नाम रखे तो क्या कुछ अनुचित किया ?

कर्मभूमी | Karmbhumi

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  • Munshi Premchand

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