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महात्मा गाँधी पर ढेर सारी पुस्तकें हैं, पर जिनमें या तो उनकी स्तुति है या आलोचना। कुछ लेखकों ने उनको अवतार, पैगम्बर, मसीहा, त्रिकालदर्शी बना दिया तो अन्य लोगों ने उन्हें स्वप्नलोकिय, स्वप्नदृष्टा, अव्यवहारिक, प्रतिक्रियावादी, पूँजीवाद का समर्थक, दक्षिण पंथी, दकियानूसी बताने की चेष्टा की ये दोनों ही पक्ष अनुचित हैं। गाँधी को वैसे ही समझना समझाना चाहिए जैसे कि वह स्वयं हैं। यथार्थ में उनका चिन्तन क्या है, वह कितना सामयिक, कितना सार्थक, कितना शाश्वत है, इस पर अच्छी पुस्तकों का अभाव आज भी है। राष्ट्रभाषा हिन्दी में यह अभाव और भी खलता है। गाँधी को न दया की आवश्यकता है और न सहानुभूति की केवल आवश्यकता इस बात की है कि उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाय ताकि इक्कीसवीं सदी के कगार पर खड़े, केवल भारत ही नहीं समूचे विश्व को एक नूतन जीवन, नूतन मूल्य एवं नूतन दर्शन के सृजन में संभवतः रोशनी मिल सके। यह पुस्तक इस दिशा में एक लघु प्रयास है।

जयपुर पब्लिशिंग हाउस के संचालक एवं मेरे मित्र श्री स्व. रामचन्द्र जी अग्रवाल के प्रति में आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने इसके प्रकाशन में रुचि और तत्परता दिखाई।

गाँधी चिन्तन । Gandhi Chintan

SKU: 9788180472145
₹350.00 Regular Price
₹315.00Sale Price
Out of Stock
  • K.L. Kamal

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