जिस कृति का अध्ययन करने पर मन प्रसन्नता से अभिभूत हो जाय, आत्मा आनंद की अनिर्वचनीय अनुभूति करने लगे और जिसका मनन और आचरण सद्वृत्तियों का संचार करने लगे, ऐसी प्रभावोत्पादक और कलात्मक रचना ही सच्चे अर्थों में साहित्य की अभिधा प्राप्त करने की अधिकारिणी है। हिन्दी साहित्य में ऐसे काव्य मनीषियों की समृद्ध परंपरा रही है और गिरिधर कविराय ऐसी स्वर्णिम शृंखला की महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं।
यह अलग बात है कि गिरिधर कविराय के संबंध में जीवन वृतान्त विषयक प्रामाणिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उनकी नैतिक और आध्यात्मिक कुण्डलियाँ जन-जन की कण्ठहार बन गई हैं। ईश्वर की एकता, आचरण की पवित्रता, लोक व्यवहार और जीवन के शाश्वत मूल्यों की जैसी सहज, स्वाभाविक और सरस अभिव्यंजना गिरिधर कवि की कुण्डलियों में हुई है, वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। इस दृष्टि से कवि गिरिधर हिन्दी के लब्धप्रतिष्ठ कवियों की अग्रपंक्ति में गिने जाने योग्य हैं।
'गिरधर की अनमोल कुण्डलियाँ' में गिरिधर कविराय की पचास से अधिक कुण्डलियाँ चयनित कर उन्हें सरलार्थ के माध्यम से अधिक लोकोपयोगी बनाने का प्रयास किया गया है।
एक बार पुस्तक हाथ में उठाइये तो सही, पुस्तक की सूक्तियों को कण्ठस्थ किए बिना नहीं रहेंगे। सुधी पाठकों के मानस-पाथेय के रूप में प्रयोग्य कृति....
गिरिधर कविराय की अनमोल कुण्डलियाँ । Giridhar Kaviray Ki Anmol Kundaliyan
Preetam Prasad Sharma