यह सच है कि संपूर्ण धरती का इतिहास रक्त रंजित पन्नों से भरा पड़ा है किंतु यह भी सच है कि हर युग में मनुष्य को प्रेम और शांति की चाह रही है।
यही कारण है कि हलाकू, चंगेज खां और तैमूरलंग की रक्त रंजित परंपराओं के वारिस मुगलों का सेनापति अब्दुर्रहीम भारत की नदियों का जल पीकर शांति और प्रेम का दूत बन गया। उस तुर्क सिपाही के हृदय में कृष्णभक्ति की ऐसी निर्मल धारा प्रकट हुई जिससे भारत भूमि का कण-कण धन्य हो गया।
रहीम ! जो सिपाही था। रहीम ! जो मुगलों का सबसे बड़ा सेनापति था। रहीम ! जो कवि था। रहीम ! जो अपने युग का सबसे बड़ा दानवीर था। रहीम ! जो कृष्णभक्त था ! रहीम ! जो सुल्ताना चांद, महाराणा अमरसिंह और हिंदुस्थान के बड़े से बड़े राजे-महाराजे का पथ प्रदर्शक था।
रहीम ! जो हुमा का पंख धारण करता था। रहीम ! जिसका दरबार धरती भर के दरबारों में सर्वाधिक समृद्ध था । रहीम ! जिसके पास संसार का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। रहीम ! जिसके पैरों में पगड़ियां रखकर मुगल शहजादे धन्य हो जाते थे।
रहीम ! जिसने समूचे दक्खिन को अपनी तलवार के जोर पर अकबर के लिये अपने अधीन बनाये रखा। रहीम ! जिसके बेटों और पोतों के सिर जहांगीर ने काट लिये। रहीम ! जिसे शाहजहां ने कैद कर लिया। रहीम जो मुगलिया सल्तनत को लात मारकर चित्रकूट में जा बैठा। रहीम ! जो वृद्धावस्था में भी अकेला ही जहांगीर को दुष्ट महावतखां की कैद से छुड़ा लाया।
'चित्रकूट का चातक' उसी रहीम की महागाथा है। यह महागाथा है उस रहीम की जो रणभूमि में आग का शोला बन जाता था और शत्रुओं पर मौत बनकर टूटता था। यह महागाथा है उस रहीम की जो कवियों, गवैयों और चित्रकारों का पालनहार था।
यह महागाथा है उस रहीम की जो गरीब का गुलाम था और उन
चित्रकूट का चातक | Chitrakoot Ka Chatak
Dr. Mohanlal gupta