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'चिन्तामणि' (भाग-1) हिन्दी गद्य का उत्कृष्टतम प्रतिमान है। गद्य यहाँ इतना विकसित हो गया है कि उससे जो अपेक्षा करो उसकी वह पूर्ति करेगा। दर्शन- मनोविज्ञान-काव्यशास्त्र के सूक्ष्म से सूक्ष्म प्रसंग यहाँ बड़े सहज भाव से, पूरे आत्मविश्वास के साथ और लगभग घरेलू भाषा में व्याख्यायित हुए हैं। पारिभाषिक शब्दों के जाल से मुक्त होने के कारण, निबन्धकार के चिन्तन का नितान्त मौलिक रूप उभरकर सामने आता है। पेशेवर मनोविज्ञानशास्त्रियों से अलग यहाँ उत्साह, क्रोध, लज्जा, ग्लानि, श्रद्धा, भक्ति जैसे सूक्ष्म मनोवेगों का उनके दैनन्दिन सन्दर्भों में सटीक, सोदाहरण चित्रण हुआ है, जिसमें साधारण गृहस्थ और अधीत शास्त्री दोनों के लिए विचार-सामग्री है। कभी लग सकता है कि प्रसाद के काव्य 'कामायनी' (1937) और रामचन्द्र शुक्ल के 'चिन्तामणि' (1939) निबन्ध संग्रह का बन्धान एक-दूसरे के समतुल्य चलता है। चिन्ता- आशा - श्रद्धा से लेकर काम-लज्जा इड़ा होते हुए आनन्द तक कामायनी में जिस प्रकार मानवीय अन्तःकरण का विकास प्रसाद ने अंकित किया है. अपनी स्वतन्त्र मेधा से उन मनोवेगों का अत्यन्त तलवर्ती व्यावहारिक विश्लेषण आचार्य शुक्ल ने 'चिन्तामणि' में किया है। तब 'कामायनी' यदि आधुनिक कविता की शीर्ष उपलब्धि है तो 'चिन्तामणि' आधुनिक गद्य के क्षेत्र में अपना अभिधान स्वयं सार्थक सिद्ध करता है।

यह निरा संयोग नहीं कि 'चिन्तामणि' (भाग-1) के भावों तथा मनोविकारों सम्बन्धी प्रथम दस निबन्धों के एकदम बाद, लगभग नाटकीय ढंग से, ग्यारहवाँ निबन्ध आता है' कविता क्या है?' साहित्य, विशेषतः कविता के सम्बन्ध में आचार्य शुक्ल की बुनियादी मान्यताएँ इस निबन्ध में प्रस्तुत हुई हैं,

चिन्तामणि | Chintamani

SKU: 9789389243352
₹150.00 Regular Price
₹135.00Sale Price
Out of Stock
  • Aacharya Ramchandra Shukl

     

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