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आज़ादी की लड़ाई के दौरान ही यह मुद्दा बार-बार उठा कि आज़ाद भारत में अछूत कही जाने वाली जातियों की स्थिति क्या होगी? फुले-पेरियार-अंबेडकर के आंदोलनों ने जाति प्रश्न को प्रमुखता से उभारा तो गांधी का छुआछूत विरोधी आंदोलन इसका ही एक और आयाम था।

आज़ादी के बाद संविधान बना तो दलितों-आदिवासियों के समुचित प्रतिनिधित्व के लिए नौकरियों और संसद में आरक्षण की जो व्यवस्था की गई वह शुरू से ही वर्चस्वशाली जातियों के प्रतिनिधियों की आँखों की किरकिरी बनी रही। फिर नब्बे के दशक में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए मंडल आयोग की अनुशंसाओं के ख़िलाफ़ तो हिंसक आंदोलन भी हुए। अभी हाल में 2022 जब म्ॅै आरक्षण लागू हुआ तो इसे आरक्षण की मूल भावना के ख़िलाफ़ बताया गया।

सत्येंद्र प्रताप सिंह की यह किताब भारतीय समाज में जाति प्रश्न और आरक्षण से जुड़े सवालों को अकादमिक तरीके से ही नहीं बल्कि एक कार्यकर्ता के तेवर से भी उठाती है और सामाजिक-आर्थिक यथार्थ के बरअक्स समझने का प्रयास करती है। आम पाठकों और शोधार्थियों के लिए समान रूप से उपयोगी यह किताब हिन्दी क्षेत्र में आरक्षण के सवाल को बेहतर तरीके से समझने के लिए बेहद कारगर है। 13 मई, 1975 को गोरखपुर में जन्मे सत्येंद्र पी. एस. ने सेंट एंड्यूज कॉलेज गोरखपुर से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर किया तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की उपाधि ली। 22 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय सत्येंद्र पिछले 14 वर्षों से बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में कार्यरत हैं। उनकी किताब मंडल कमीशनः राष्ट्र निर्माण की सबसे बड़ी पहल काफी चर्चित रही है।

जाति का चक्रव्यूह और आरक्षण । Jati Ka Chakravyuh aur Arakshan

SKU: 9789393267429
₹450.00 Regular Price
₹405.00Sale Price
Out of Stock
  • Satyendra Pratap Singh

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