भावनाएँ, ज़रूरतें, महत्वाकांक्षाएँ - ये सब एक स्त्री की - लेकिन शरीर पुरुष का ! एक बेहद दर्दनाक परिस्थिति जिसमें ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं, समझौता बनकर रह जाती है। ऐसे इन्सान और उसके घरवालों को हर मकाम पर समाज के दुर्व्यवहार और ज़िल्लत का सामना करना पड़ता है। उपन्यास का पात्र अनमोल इस बात को अच्छी तरह समझता है क्योंकि उसकी अपनी एकमात्र सन्तान और छोटा भाई, दोनों की यही वास्तविकता है, दोनों किन्नर हैं। भाई को पल-पल पिसते, घर और बाहर प्रताड़ित और अपमानित होते हुए देख अनमोल यह दृढ़ निश्चय करता है कि वह अपने बेटे को अधूरी ज़िन्दगी नहीं, बल्कि भरपूर ज़िन्दगी जीने के लिए हर तरह से सक्षम बनायेगा ! लेकिन क्या वह ऐसा कर पाता है ... पढ़िये इस उपन्यास में।
ज़िन्दगी 50-50 । Zindagi 50-50
SKU: 9789386534132
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Author
Bhagwant Anmol
Publisher
Rajpal & Sons
No. of Pages
208
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