सोरठियो दूहो भलो, भल मरवण री बात
जोबन छाई नार भली तारां छाई रात।
राजस्थान की मिट्टी वीरों के शौर्य और बलिदान के लिए मशहूर है। यहाँ के योद्धाओं की गाथाएँ आज भी बड़े गर्व से सुनायी जाती है। केवल वीरों की गाथाएँ ही नहीं बल्कि राजस्थान की लोककथाओं में बहुत-सी प्रेमकथाएँ प्रचलित है पर इन सब में ढोला-मारू प्रेमगाथा विशेष लोकप्रिय रही है। इस गाथा की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आठवीं सदी की इस घटना का नायक ढोला राजस्थान में आज भी एक प्रेमी नायक के रूप में स्मरण किया जाता है और प्रत्येक पति-पत्नी की सुन्दर जोड़ी को ढोला-मारू की उपमा दी जाती है। यही नहीं आज भी लोक गीतों में स्त्रियाँ अपने प्रियतम को ढोला के नाम से ही संबोधित करती है, ढोला शब्द पति शब्द का पर्यायवाची ही बन चुका है। राजस्थान की ग्रामीण स्त्रियाँ आज भी विभिन्न मौकों पर ढोला-मारू के गीत बड़े चाव से गाती है।
वे प्रेम कहानियाँ ही है, जो न केवल इस शब्द और एहसास के आकर्षण को बढ़ाती है, बल्कि प्रेम के अस्तित्व को सीढ़ियों तक जिंदा रखकर, हमजुबान पर इसका मीठा स्वाद बनाए रखती है। ऐसी कई प्रेम कहानियाँ हैं, जो विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी में सिर्फ सुगंध-सी उड़ती है, उन्हें आप तभी जान पाते है जब उस मिट्टी पर आपके कदम पहुँचते है। ऐसी ही एक प्रेम कहानी है, राजस्थान में ढोला-मारू की गाई जाने वाली प्रेम कहानी..
ढोला मारु । Dhola Maru
Dr. Sitaram Meena