ढोला मारू रा दूहा एक प्राचीन जनप्रिय काव्य है। राजस्थान में इसका बहुत प्रचार रहा है यहां तक कि इस प्रेम काव्य के नायक-नायिका ढोला और मारवणी के नाम बोल चाल ही नहीं साहित्य में भी नायक-नायिका के अर्थ में रूढ़ हो गए है। सिंध, गुजरात, मध्य भारत और मध्यप्रदेश के कतिपय भागों में भी यह प्रेमकथा भिन्न-भिन्न रूपों में मिलती है। इस प्रेमकथा की लोकप्रियता तो निर्विवाद रही है इसके साथ ही जातीय संस्कृति के निर्माण में भी इसका बहुत हाथ रहा है। इस गीति काव्य में अनिर्वचनीय सरलता, चमत्कार, रस सौष्ठव और जो चिग्राहक शक्ति है वह अर्वाचीन काल के कला परिपुष्ट साहित्य में मिलनी दुर्लभ है। सम्पादक त्रय ने बड़े परिश्रम से साहित्यिक आलोचना व ऐतिहासिक विवेचना के साथ इसका संपादन किया है, जिससे राजस्थानी के जिज्ञासु पाठक युगों तक लाभान्वित होते रहेंगे ।
ढोला मारू रा दूहा । Dhola Maru Ra Duha
Narottam Das Swami